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अन्ना आन्दोलन की परिणति

अंतरात्मा की आवाज
अंतरात्मा की आवाज
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भ्रष्टाचारी उस दिन अति-प्रसन्न हुए जब अन्ना ने जंतर-मंतर के अनशन-स्थल से अगले दिन अनशन के समाप्ति और देश को वैकल्पिक तौर पे एक राजनैतिक दल देने का घोषणा किये और उनमे भी सबसे अत्यधिक खुश होने वालों में कांग्रेसी नेताओं की जमात थी जिनसे ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी.. बरबस ही उनके होठों से मुस्कराहट छलक जा रहे थे .. इसकी दो ख़ास वजह थी :

पहला-जो भ्रष्टाचारी (खासकर कांग्रेसी) चाहते थे, उनके मन की मुराद पूरी हो गई, क्यूंकि वो तो चाहते ही थे की अन्ना टीम राजनैतिक मैदान में उतरे, क्यूंकि कांग्रेस के कुटिल और कपटी राजनीतिज्ञों को अच्छी तरह पता है कि आज के चुनावी दौर में राजनेता को जितने के लिए पैसे कि जरुरत होती है और पैसे के लिए भ्रष्टाचार की, जिसपर उनका जन्मसिद्ध अधिकार है | चुनावी मैदान में इमानदारी से ज्यादा कमीनेपन की जरुरत होती है जो भेड़ रूपी आम जनता के आँखों में धुल झोंकने में सक्षम हो | आज भी लोग योग्यता से पहले उसका जात देखते हैं, उसके आदर्शों और व्यवहार से पहले उसके पार्टी को देखते हैं| ऐसे में अन्ना टीम या उनका दल कांग्रेस का कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा…उल्टा अगर अन्ना का राजनैतिक दल मैदान में उतरता है तो सीधे तौर पे उसे फ़ायदा ही पहुंचेगा और उसके भी दो वजह है
(क) कांग्रेस के मूल समर्थक( (१.) ९९% मुसलमान, (२.)पारंपरिक मतदाता जिनके बाप-दादे वर्षों से कांग्रेस को मत देते आये हैं, वो भी दे रहे हैं और उनकी आने वाली पीढ़ी भी देगी, (३.) कांग्रेस के नेता,कार्यकर्ता और उनके रिश्तेदार, ४. खानदानी भ्रष्टाचार) कभी भी अन्ना के आन्दोलन को समर्थन दिए ही नहीं उल्टा वो शुरू से ही इसका विरोध करते आये हैं | इसी कारण कांग्रेस पूर्णतया निश्चिन्त है कि उसके वोट बैंक पे अन्ना के राजनैतिक दल के बनने का कोई असर नहीं पड़ने वाला|
(ख)भ्रष्टाचार के जन-आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वालों में बड़ा तबका वैसे बुद्धिजीवी वर्ग से आत�� है जो या तो भ्रष्टाचार और कांग्रेस से नफरत करता है या फिर भाजपा का समर्थन करता है ऐसे में अन्ना अपना राजनितिक दल बनाते हैं तो कांग्रेस के विरोधियों का वोट बँट जाएगा और कांग्रेस आसानी से चुवाव फिर से जीत जाएगा | शायद यही वजह है भाजपा के चिंता का भी, कि जिस दिन से टीम अन्ना ने राजनैतिक दल बनाने का घोषणा किया है भाजपा फिर से लोकपाल का राग अलापने लगी है…
दूसरा- अब भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवाला कोई नहीं बचा और अगर टीम अन्ना अब आवाज उठाए भी तो उसमें अब वो दम नहीं होगा, साथ ही उनके अनशन का भी अब कोई डर नहीं रहा क्यूंकि उनके अनशन और आन्दोलन पर पहले तो लोग भरोसा ही नहीं करेंगे और अगर कुछ लोग किये भी तो वो कितने कम होंगे कि उनका आसानी से उपेक्षा किया जा सकता है|
              भले ही अन्ना टीम ये माने या ना माने कि इस आन्दोलन के दुर्भाग्यपूर्ण समाप्ति के बाद भी कुछ खोया नहीं है पर हकीकत इससे इत्तेफाक नहीं रखता… इस बार के अधूरे आन्दोलन ने वही हथियार खो दिया जिसके बदौलत इस जन-आन्दोलन को इतनी भाड़ी सफलता मिली थी और वो है भरोसा | अन्ना टीम ने अपना भरोसा खो दिया है, वही भरोसा जिसे अन्ना ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में कमाया था आज अन्ना आन्दोलन का ज्यादातर समर्थक के जेहन में यही सवाल है कि इस आन्दोलन को ऐसे ही दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से ख़त्म करना था तो इतना तमाशा क्यूँ खडा किया? आज भी दुष्यंत के कविता कि वो लाइने मुझे याद है जिसे अरविन्द केजरीवाल पीछे-पीछे हमने दुहराया था “सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं शर्त इतनी है कि ये सूरत बदलनी चाहिए”…आतंरिक तौर पे मेरे अंतर्मन में भी बहुत पीड़ा हुई जब मैंने देखा कि भ्रष्ट-तंत्र कि सूरत बदलते-बदलते इस जन-आन्दोलन का ही सूरत बिगड़ गया | इस आन्दोलन के अचानक और दुर्भाग्यपूर्ण समाप्ति कि घोषणा ने इस आन्दोलन के समर्थकों को निराशा और पराजय के सिवा कुछ ना दिया पहली बार लोगों को लगा कि इस जन-आन्दोलन के जनक(टीम अन्ना) ने ही इस धर्मयुद्ध में धर्म का(उनका) साथ दे रहे लोगों को पराजित कर दिया | भ्रष्ट सरकार से तो खैर उम्मीद ही नहीं थी पर टीम अन्ना ने ऐसा क्यूँ किया ये बात आमलोगों को समझ में नहीं आया? ज्यादातर लोग अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे हालांकि मेरा खुद का मानना है कि दस दिनों तक लगातार अनशन करना आमतौर पे किसी आम आदमी के बूते कि बात नहीं है परन्तु इस बात पर भी अच्छी तरह विचार-मंथन टीम अन्ना को पहले ही करना चाहिए था कि अगर दस दिनों तक सरकार की ओर से कोई पहल नहीं होता है तो इस आन्दोलन का अंततः परिणाम क्या होगा? और अगर इस अनशन/आन्दोलन का ऐसा अंत पहले से सुनिश्चित था तो बलिदान की बाते करना निरर्थक ही नहीं बल्कि पूर्णतः दिखावा नजर आता है …मेरी नजर में अनशन के समाप्ति की घोषणा इस तरीके से नहीं करना चाहिए था पहले सरकार को मजबूर करना चाहिए था आन्दोलन के मुख्य अनशनकारियों को अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए और जब ऐसा होता तो सरकार खुद-ब-खुद दबाब में आ जाती, क्यूंकि लोग तहलका मचा देते और अगर सरकार दबाब में नहीं भी आती तब भी अगर अनशन को समाप्त करते तो कम से कम लोगों का भरोसा नहीं टूटता…
जहाँ तक राजनैतिक दल बनाकर इस देश को बेहतर विकल्प देने की बात है तो मैं इससे शत-प्रति-शत सहमत हूँ, लेकिन राजनैतिक दल बनाने की घोषणा करने का तरीका और समय गलत था… जिस समय अन्ना समर्थक अनशन और आन्दोलन के अचानक समाप्ति के घोषणा से क्षुब्ध थे, निराश थे, ठीक उसी समय राजनैतिक दल बनाने के फैसले ने आग में घी का काम किया और उनके मन के निराशा को क्रोध में तब्दील कर दिया, शायद यही वजह रहा की कुछ अन्ना समर्थकों ने ही अन्ना का पुतला तक फूंक डाला | हो सकता है अन्ना का पुतला फूंकने वाले अन्ना समर्थको में ज्यादातर भाजपाई मतदाता हों पर इसमें भी शक नहीं की अन्ना का समर्थन देने वालों में भी ज्यादातर भाजपा के ही समर्थक होते हैं | राजनैतिक दल बनाने की घोषणा से पहले इन्हें सर्वेक्षण करवाना चाहिए था और अगर समर्थकों का जबाब हाँ होता तो सोचना चाहिए था कब और कैसे? पर इन्होने उलटा किया पहले घोषणा किया… फिर सर्वेक्षण… जिसकी वजह से लोगो ने इनके सर्वेक्षण को इनका दिखावा समझ लिया और भ्रष्टाचारी बैठे ही थे इस फिराक में की जैसे ही अन्ना राजनैतिक दल बनाने की सोचे… लोगों को सीधा बताया जाये- अन्ना टीम की तो शुरू से ही महत्वाकांक्षा ही यही थी….
खैर अब भी वक्त है अगर ये(टीम अन्ना) वाकई बड़े भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाना चाहते हैं, उनलोगों को लोकसभा और राज्यसभा में आने से रोकना चाहते हैं जिन्होंने जन-लोकपाल का सीधा-सीधा विरोध किया है… तो पहले ये विचार करें की राजनैतिक दल का गठन कब और कितना विस्तृत करें ? मसलन मेरी राय में पहले चुनाव(२०१४) में अपना प्रत्याशी इन्हें सिर्फ उन पंद्रह(१५) भ्रष्ट मंत्रियों के विरुद्ध उतरना चाहिए जिनके विरुद्ध ये SIT के गठन की मांग कर रहे हैं, या फिर जो जन-लोकपाल बिल की राह में रोड़ा हैं, इस प्रकार टीम अन्ना चुनावी दांव-पेंच की सच्चाई से वाकिफ भी हो जायेगी और कांग्रेसियों को भी अपने औकात का पता चलेगा | अगर सारे ५४३ लोकसभा सीटों से इन्होने अपने प्रत्याशी उतारे तो हारना तो सारे जगह से तो तय ही है उल्टा भ्रष्ट कांग्रेसियों को सीधे तौर पे फ़ायदा पहुंचेगा क्यूंकि उसके विरोधियों(भाजपा) का मत विभाजित हो जाएगा, और अगर २०१४ में कांग्रेस की सरकार फिर से बनती है तो इसके लिए सीधे तौर पे टीम अन्ना ही जिम्मेदार होगा और आम जनता जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतारा था, टीम अन्ना को कभी भी माफ़ नहीं कर सकेगा……

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