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भ्रष्टगान (Not राष्ट्रगान)

अंतरात्मा की आवाज
अंतरात्मा की आवाज
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तन-मन-धन से परम-भ्रष्ट, हे भारत माँ विक्रेता

सर्वनाश-भव तेरा तत्क्षण, क्षय.. कुत्सित राजनेता

राजस्थान उत्तराखंड असम, यूपी.. दिल्ली महाराष्ट्रा

दुराचार व् पाप तुम्हारे, व्याप्त अथ सर्वत्रा

सर्वजनेय सर्वविदित अथ नृत्यकृतं तुम नंगा

आमजने बिच द्वेष भरत व् फिरत कराते दंगा

सत्यमेव दिए त्यागे

सबने, भ्रष्टमेव के आगे

हे लोकतंत्र खलनायक

जन-गन के हे अमंगल दायक, अपराधी निर्माता

क्षय हो… क्षय हो… क्षय हो…

तेरी क्षय.. क्षय.. क्षय.. क्षय.. हो…

भावार्थ:

हे तन-मन और धन से परम भ्रष्ट, इस देश और भारत माँ को बेच डालने वाले कुत्सित राजनेता तुम्हारा तुरंत सर्वनाश हो

तुम्हारे दुराचार, आतंक और पाप सम्पूर्ण भारत में हर जगह व्याप्त है चाहे दिल्ली यूपी राजस्थान महाराष्ट्र या कही और भी हो

ये सारे दुनिया के सभी लोगों को पता है की अपने बल का दुरूपयोग करके सारे जगह तुम अपने अन्याय और अत्याचार का नंगा नाच करते हो

आम लोगों में एक दुसरे के बिच दुश्मनी फैलाकर दंगा करवाते हो सिर्फ अपनी राजनितिक रोटियां चमकाते हो,

भ्रस्ताचार की खातिर तुमने सदाचार जैसे चीज़ का परित्याग कर दिया है…

तुम लोग लोकतंत्र के असली खलनायक हो जो अपराध को बढ़ावा और अपराधियों को संरक्षण देने जैसा घिनौना कार्य करते हो और

आम लोगों को सिर्फ और सिर्फ दुःख और पीड़ा देने वाले काम करते हो…

तुम सबका जल्द से जल्द समूल नाश हो….नाश हो… नाश हो…और सर्वनाश हो….

नोट: देश के गद्दारों और बुद्धुजिवियों को सूचित किया जाता है की ये भ्रष्ट्रगाण है इसके तर्ज को देख कर इसे राष्ट्रगान समझने या समझाने की भूल ना करें

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